अश्वस्य भूषणं वेगो मत्तं स्याद् गजभूषणं।


चातुर्यम् भूषणं नार्या उद्योगो नरभूषणं।।

 

सिंहवत्सर्ववेगेन पतन्त्यर्थे किलार्थिनः॥

 

न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपु:।
व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिप्वस्तथा।।

Sarhad Ko pranam

Forum for Integrated National Security

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